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इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (Income Tax Appellate Tribunal) ने अपने एक ताजा फैसले में करदाताओं को बड़ी राहत दी है. यह राहत वैसे करदाताओं के लिए है, जिन्हें किसी कारण अपने घर के बजाए किराए पर रहना पड़ रहा है और किराए के पैसों का भुगतान बिल्डर कर रहा है. ऐसे मामलों में बिल्डर से मिल रहे भुगतान को इनकम टैक्स एक्ट के तहत संबंधित करदाता की कमाई नहीं माना जा सकता है.
शहरों में हो रहे रिडेवलपमेंट
आगे बढ़ने से पहले आपको यह बता दें कि मेट्रो शहरों में जमीन की कमी और प्रॉपर्टी की बढ़ती कीमतें रिडेवलपमेंट को बेहतर विकल्प बना रही हैं. इसमें उन इमारतों का कायाकल्प किया जाता है, जिनकी लाइफ स्पैन खत्म होने के करीब है. यह मकान मालिकों और निवेशकों दोनों के लिए अच्छा सौदा होता है. घर मालिकों को आधुनिक सुख-सुविधाएं मिलती हैं, जबकि निवेशकों को अच्छी लोकेशन पर प्रॉपर्टी मिल जाती है. घर मालिकों को अपना घर देने के बाद जो बचता है, उसे बेचकर वे मुनाफा कमाते हैं.
क्या है टैक्स ट्रिब्यूनल का फैसला?
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) की मुंबई बेंच ने माना है कि रि-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के चलते बिल्डर से मुआवजे के रूप में मिले किराए पर पुराने फ्लैट मालिक को टैक्स नहीं देना होगा. जब किसी पुरानी हाउसिंग सोसायटी का रिडेवलपमेंट किया जाता है यानी उसे नए सिरे से बनाया जाता है, तो बिल्डर मकान मालिकों को रहने के लिए जगह मुहैया कराता है या किराए पर रहने के लिए पैसे देता है, जब तक कि उन्हें अपना घर नहीं मिल जाता है. आमतौर पर इस पैसे का इस्तेमाल किसी दूसरे घर में किराए पर रहने के लिए किया जाता है.
क्यों इन मामलों पर हुआ विवाद?
आयकर कानून के तहत, रेंटल इनकम यानी किराए के रूप में मिली आय टैक्सेबल होती है. ऐसे में मामला यह बनता है कि Compensatory Rental यानी मुआवजे के रूप में मिले किराए को आय माना जाए या नहीं.
टैक्स ट्रिब्यूनल ने क्या कहा?
टैक्स ट्रिब्यूनल ने फैसले में कहा है कि रिडेवलपमेंट की स्थिति में जितने समय व्यक्ति खुद के घर से विस्थापित यानी दूर रहता है, उस दौरान मिले किराए पर टैक्स नहीं लगेगा. मुंबई पीठ ने माना है कि क्षतिपूर्ति किराया पूंजीगत प्राप्ति है न कि किसी तरह की आय है, इसलिए फ्लैट मालिक के हाथ में आए पैसों पर टैक्स नहीं लगेगा.
किस मामले पर आया फैसला?
यह फैसला अजय पारसमल कोठारी की अपील पर आया है. वित्त वर्ष 2012-13 के लिए कंप्यूटर आधारित स्क्रूटनी में उनका मामला सामने आया था, जिसके बाद कर अधिकारी ने पाया कि कोठारी को बिल्डर से क्षतिपूर्ति किराए के रूप में 3.7 लाख रुपये मिले थे. हालांकि, उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल रहने के लिए नहीं किया था. कर अधिकारी ने इस रकम को अन्य स्त्रोत से आय के तहत कर योग्य आय माना था. यानी उन्हें अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से इस रकम पर टैक्स देना था, जिसके खिलाफ उन्होंने कमिश्नर (अपील) और बाद में ITAT में अपील की थी.
किन लोगों को मिलेगी राहत?
ट्रिब्यूनल ने कहा कि करदाता भले ही अपने माता-पिता के साथ रहता था, लेकिन रिडेवलपमेंट के लिए अपना फ्लैट खाली करने में उसे परेशानियों का सामना करना पड़ा था. ऐसे में क्षतिपूर्ति के लिए मिला किराया कर योग्य नहीं है. अगर आपकी बिल्डिंग भी नए सिरे से बनाई जा रही है, तो यह फैसला आपके लिए भी काम का है. इससे लाखों लोगों को काफी राहत मिलेगी, क्योंकि कई शहरों में बड़ी संख्या में रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
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