Home Business बिहार में बजरंग दल पर बैन की मांग, महागठबंधन में वोट की लड़ाई, नीतीश कुमार का अतिवादी रुख

बिहार में बजरंग दल पर बैन की मांग, महागठबंधन में वोट की लड़ाई, नीतीश कुमार का अतिवादी रुख

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बिहार में बजरंग दल पर बैन की मांग, महागठबंधन में वोट की लड़ाई, नीतीश कुमार का अतिवादी रुख

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<p style="text-align: justify;">बिहार के नालंदा से जेडीयू सांसद कौशलेंद्र कुमार ने अब वहां भी ‘बजरंग दल’ को बैन करने की मांग उठा दी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हालांकि इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कह दिया कि अभी उनके पास ऐसी बातों पर सोचने का समय नहीं है, वह दूसरी चीजों में व्यस्त हैं. हालांकि, जब से नीतीश का बीजेपी से गठबंधन टूटा है, तब से वह खुद को अधिक सेकुलर दिखाने की होड़ में दिख रहे हैं. बिहार में अक्सर ही धार्मिक त्योहारों पर फसाद की भी खबरें आ रही हैं और समाज में ध्रुवीकरण तेज हो रहा है. ऐसे में जेडीयू सांसद की इस मांग के पीछे कर्नाटक चुनाव का प्रभाव है या बिहार के आनेवाले चुनाव की तैयारी, यह आकलन करना बड़ा मुश्किल होगा.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>बैन करना किसी तरह समाधान नहीं</strong></p>
<p style="text-align: justify;">जो आज बजरंग दल को बैन करने की मांग कर रहे हैं, वे तो साल भर पहले उनके साथ ही थे. हमारे देश में कई तरह की विचारधाराएं हैं, कई तरह के लोग हैं, कई तरह के कैरेक्टर हैं, तो आप किन-किनको और कितनों को बैन करेंगे. बैन करने की बात अगर है तो जातिवादी संस्थाएं हैं, दकियानूसी विचार हैं, उन्हें बैन करें. बैन करना कोई समाधान नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;">मेरे विचार से बजरंग दल जैसे संगठन की आज के समाज में कोई भूमिका नहीं है, लेकिन यह बैन करने की मांग करना भी वैसा ही है, जैसे बजरंग दल के लिए सक्रिय तौर पर काम करना. यह शायद इसलिए है कि कुछ नेता समय-समय पर अपने वोटर्स को संबोधित करते हैं. ये केवल वोट बैंक की राजनीति है और इसीलिए इसका समर्थन नहीं होना चाहिए.</p>
<p style="text-align: justify;">जेडीयू चूंकि अभी पिछले साल तक बीजेपी के साथ थे, अभी जब ये एनडीए से छिटक कर आए हैं, तो नया जनाधार खोज रहे हैं. वे जानते हैं कि वह जनाधार तो बीजेपी विरोधी है और वहां तो लालू प्रसाद की पहले से पैठ है. तो उनको लगता है कि ये सब बोल कर वो अपना वोट बढ़ा लेंगे, मुसलमान उनको वोट दे देंगे. अब वो वोट बैंक जो मोदी-विरोधी वोट बैंक है, वही तो महागठबंधन का वोट है और यह उनकी अंदरूनी लड़ाई है. तो इसलिए ये बोल रहे हैं लालू प्रसाद को कि भाई हम तो नए मुल्ला हैं, अधिक प्याज खाएंगे. आप तो उनकी अनदेखी करते थे, हम उनको बैन करने की बात करते हैं. बाकी, ये हास्यास्पद मांग ही है. बुद्ध जो थे, वह भगवान को ‘अव्याकृत’ बोलते थे, कहते थे कि भाई, उस पर बात ही न करो. बात करोगे तो दिक्कत होगी. तो, ये जिस तरह के मुद्दे हैं, वो जनता को मूल मुद्दे से भटका रहे हैं. कभी आप जातिवार जनगणना करवाते हैं, कभी बजरंग दल पर बैन करने की मांग करते हैं, तो ये सब असली मुद्दे नहीं हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नीतीश की कार्यशैली अतिवादी</strong></p>
<p style="text-align: justify;">नीतीश जी की जो कार्यशैली है, उस पर तो बात होनी ही चाहिए. जैसे, उन्होंने शराबबंदी कर दी. जब आप इस तरह किसी चीज को पूरी तरह नकार देते हैं, तो उसकी तरफ एक अनचाहा आकर्षण भी पैदा करते हैं. जैसे, हमारे देश में ब्रह्मचर्य की भावना ने लोगों को सेक्स की तरफ अधिक उन्मुख किया. यह जो ‘नकार’ है, वह गलत है. शराब आपने कथित तौर पर बंद की, लेकिन शराब की मात्रा भी बढ़ गई और लोग भी ज्यादा मरने लगे. नीतीश कुमार की सरकार ने ही तो शराब को गांव-गांव तक फैलाया. उसके बाद अचानक बैन लगा दिया. अब जो स्थितियां प्रकट हुई हैं, वह तो किसी और तरफ इशारा करती हैं. अब मान लीजिए, आपने बजरंग दल को बैन कर दिया, तो जो बच्चा गांव-देहात या शहर का नहीं भी जानता था, वह भी उसके बारे में पूछने लगेगा.</p>
<p style="text-align: justify;">जर्मन साहित्यकार बर्तोल्त ब्रेख्त की एक कविता है. वह बताती है कि कोई क्रांतिकारी जेल में गया और उसने वहां जेल की दीवार पर नारा लिख दिया. जेलर को सख्त नापसंद था, तो उसने उस पर कूची फिरवा दी. अब वह नारा और चमकने लगा. फिर, जेलर ने कहा कि इसे खोद दो, तो छेनी-हथौड़ी से खोदा गया और अब वहां बिल्कुल अलग ही दिख रहा था- लेनिन जिंदाबाद.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">तो, इस अतिवादी अंदाज से हमें बाज आना चाहिए. यह बात वैसे भी विवेक के विरुद्ध है कि इस पर रोक लगा दो, उस पर रोक लगा दो. अगर कोई भी अतिवादी संगठन है, तो उससे निपटने के उपाय खोजने होंगे. आप बजरंग दल पर बैन लगाएंगे और हज भवन में उत्सव करेंगे, तो लोग तो देख रहे हैं न कि आप क्या कर रहे हैं? आप हज भवन बनाएंगे, तो लोग ये भी तो मांग करेंगे कि बगल में छठ-भवन बनाइए.</p>
<p style="text-align: justify;">धर्मनिरपेक्षता को समझना पड़ेगा. आप एक से तो निरपेक्ष हैं, दूसरी तरफ टोपी लगाकर सरकारी पैसे से इफ्तार कर रहे हैं. इफ्तार पार्टी आप अपने घर में वेतन के पैसे से करवाएं, तो ठीक है. हालांकि, आप जब सरकारी आवास में इफ्तार पार्टी करते हैं, तो क्या कल सत्यनारायण कथा होगी, रामनवमी की पूजा होगी? यदि होगी, तो क्या सरकार का यही काम है…ये काम सरकार का नहीं होना चाहिए. इस तरह की मांगों का किसी को समर्थन नहीं करना चाहिए.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नीतीश 1994 में सही थे, या 2022 में?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">नीतीश जब 2005 में आए थे, तो कुछ एजेंडा था इनके पास. पंचायतों के लिए इन्होंने कुछ किया, सोचा. कॉमन स्कूल के लिए इन्होंने सोचा था, एक आयोग बनाया. मुचकुंद दुबे के नेतृत्व में एक रिपोर्ट आई. भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट आई. उसके बाद इन्होंने सारी रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया. 2011 में सब कुछ छोड़ इन्होंने सवर्ण आयोग बना दिया. क्या हुआ उसका?</p>
<p style="text-align: justify;">अब ये जातिवार जनगणना करा रहे हैं, जिस पर आखिरकार पटना हाईकोर्ट ने रोक भी लगा दी. नीतीश हों या कोई भी हों, उनको सबसे पहले सोचना चाहिए कि हमारे मूलभूत मुद्दे क्या होने चाहिए? बिहार तो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मसलों पर बेहद पिछड़ा राज्य है, तो ये हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. बड़ी अच्छी पहल थी, तेजस्वी यादव की जब उन्होंने 10 लाख रोजगार की बात कही थी, 2020 के चुनाव में. अब तो लगभग एक साल हो गया, जब वह सबसे बड़े दल के प्रतिनिधि हैं, उनके दम पर सरकार टिकी है, तेजस्वी उप-मुख्यमंत्री हैं और सरकार उनके कहे मुताबिक चल रही है, तो कहां गई वो 10 लाख वाली बात?&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">धर्मनिरपेक्ष सरकार वह होती है, जो जेंडर और धर्म के मसले से ऊपर उठकर काम करे. वह काम तो हो नहीं रहा है. नीतीश ने लालू से 1994 में विद्रोह किया तो इनका तर्क था कि लालू के नेतृत्व में सरकार नहीं चल सकती, बिहार प्रगति नहीं कर सकता. उसके बाद इतने साल बाद उनको लगता है कि लालू के बिना कोई काम ही नहीं होगा. तो, अब ये वही तय कर लें कि वह 1994 में सही थे, या 2022 में सही हैं. नीतीश ने जो मुद्दे उठाए थे, वो खुद उससे मुकर गए. तो, उनको ही खुद पर विचार करना चाहिए. कॉमन स्कूल सिस्टम वाली रिपोर्ट कहां गई, मुचकुंद दुबे की रिपोर्ट कहां गई, तो नीतीश कुमार विखंडित मानसिकता के हैं, कनफ्यूज्ड हैं और उनको पता ही नहीं चल रहा है कि वह क्या करना चाह रहे हैं? नीतीश बिहार की जनता को यथार्थ के मसलों पर लेकर आएं, वह भावनात्मक मसलों पर तो बहुत वर्षों से जी रही है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)</strong></p>

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