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G20 Summit India: 18वां जी20 शिखर सम्मेलन आज रविवार को संपन्न हो गया. शिखर सम्मेलन में दुनिया के प्रमुख देशों के नेता शामिल हुए और इस दौरान कई महत्वपूर्ण डेवलपमेंट हुए. जी20 शिखर सम्मेलन ने विभिन्न देशों को अलग से प्रासंगिक मुद्दों का हल निकालने का भी अवसर दिया. एक ऐसा ही मुद्दा भारत और रूस से जुड़ा हुआ है, जिसे समाधान की उम्मीद मजूबत हुई है.
जी20 समिट में शामिल नहीं हुए पुतिन
रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने रविवार का बताया कि रूस जमा हुए रुपये को भारत में निवेश करेगा. इसके लिए भारत की ओर से निवेश के फायदेमंद विकल्प रूस को सुझाए जाएंगे. लावरोव जी20 शिखर सम्मेलन के बाद एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. इस बार के जी20 शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने खुद हिस्सा नहीं लिया. उनके बदले रूसी विदेश मंत्री ने शिखर सम्मेलन में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया.
मिलकर निकाला जा रहा समाधान
लावरोव ने रिपोर्टर्स के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भारत ऐसे क्षेत्रों के बारे में रूस को बताएगा, जहां रूस अपने पास जमा हुए भारतीय रुपये को निवेश कर सकता है. उन्होंने कहा कि जी20 समिट से पहले जकार्ता में इस बारे में उनकी बातचीत विदेश मंत्री एस जयशंकर से हुई थी. लावरोव ने कहा कि दोनों देशों की सरकारें इस मुद्दे का ऐसा हल निकालने का प्रयास कर रही हैं, जिससे दोनों देशों को फायदा हो सके.
इस कारण पैदा हुई गंभीर समस्या
दरअसल यूक्रेन और रूस के बीच डेढ़ साल से ज्यादा समय से चल रही जंग के चलते पश्चिमी देशों ने अमेरिकी की अगुवाई में रूस के ऊपर कई आर्थिक पाबंदियां लगाई है. दूसरी ओर युद्ध शुरू होने के बाद रूस और भारत के बीच व्यापार बढ़ा है. हालांकि व्यापार बढ़ने में अकेला योगदान रूस से भारत को मिल रहे कच्चे तेल का है. इसके लिए रूस रुपये में भुगतान लेने पर सहमत हुआ था. चूंकि रूस अभी भारत से काफी कम खरीद कर रहा है, ऐसे में उसके पास रुपये जमा होते जा रहे हैं, जिनका वह इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है.
दोनों देशों को इस तरह से होगा फायदा
दोनों देश महीनों से इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास कर रहे हैं. अटके रुपये को उचित क्षेत्रों में निवेश करने की बात जमीन पर उतर पाती है तो रूस को एक तरफ जमा रुपयों का इस्तेमाल करने का विकल्प मिलेगा, साथ ही वह उनसे कुछ रिटर्न भी हासिल कर पाएगा. इस तरह रूस को आर्थिक पाबंदियों को बाईपास करने का रास्ता मिलेगा, जबकि भारत के लिए बेशकीमती विदेशी मुद्रा की बचत करने का विकल्प उपलब्ध होगा.
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